COVID-19 : परदेश में कौन करता मदद तो चल पड़े आठ महीने की गर्भवती पत्नी और तीन साल के बच्चे के साथ पैदल ....

मोहम्मद उस्मान कुरैशी।


रतनपुर। इस तालाबंदी में परदेश में कौन हमारी मदद करता। मोटर गाडी तो चल नहीं रहे हैं, तो पैदल ही निकल पड़े है अपनी माटी तक अपनों के बीच जाने के लिए जहां शयद हमारे पैरों के छालों को सांत्वना के मलहम नसीब हो जाए।   
 घर से पांच सौ किलोमीटर दूर मजदूर ओमप्रकाश हर रोज क्रसर में बड़े बड़े पत्थरों को चकनाचूर होते देख कभी सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा कि एक दिन पेट की भूख और अपनों की यादें उसके हौसले को तोड़ सपनों को भी चकनाचूर कर देगा। भूख और बेचैनी के बीच वो अपने तीन साल के बेटे व आठ महीने की गर्भवती पत्नी को साथ लेकर पैदल ही पांच सौ किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के गांव के लिए निकल पडे है। अपने अन्य 13 साथियों के साथ चार दिन में डेढ सौ किलोमीटर की पदयात्रा पूरी कर शुक्रवार की रात करीब आठ बजे रतनपुर पहुंचे। जहां महामाया मंदिर टस्ट की ओर से उपलब्ध कराएं जा रहे भोजन स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उपलब्ध कराएं।  ओमप्रकाश कहते हैं गांव में काम नहीं मिलने पर ही वह अपनों से दूर गर्भवती पत्नी और बच्चे के साथ रायपुर के पास एक क्रसर में मजदूरी करते था। सब कुछ तो ठीक ही चल रहा था कि अचानक क्रसर में तालाबंदी हो गई कुछ समझ पाते इससे पहले ही बीते पच्चीस दिनों में जमा पूंजी भी खत्म हो गई। इस दौरान क्रसर मालिक और सरकारी नुमाइंदों से भी कोई मदद नहीं मिली रही सही कसर 14 अप्रैल के प्रधानमंत्री के लॉकबंदी को 3 महीने तक बढाने की घोषणा  ने पूरी कर दी। ओमप्रकाश कहते हैं एक दो रोज में सब कुछ पटरी पर लौट आने की उम्मीद के साथ रूके रहे। रायपुर में गर्भवती पत्नी और तीन साल के बच्चे के साथ किराए के मकान में रह रहे थे। घर के राशन के साथ जमा रकम भी खत्म हो गए। रह रहे मकान का किराया देने के लिए भी पैसे नहीं बचे। पत्नी की गर्भ में पल रहे बच्चे की चिंता भी सताने लगी। कुछ उंचनीच हो जाए तो इस तालाबंदी में परदेश में कौन हमारी मदद करता। तो पैदल ही निकल पडे है अपनी माटी तक अपनों के बीच जाने के लिए जहां शायद हमारे पैरों के छालों को सांत्वना के मलहम नसीब हो जाए। 


  पांच जिले की सरहदों में नहीं मिली संवदना 


सरकार और प्रशासन लॉकडॉउन में जरूरतमंद लोगों तक भोजन और जरूरी सामान पहुंचाने के लाख दावें कर रही है। इन दावों की पोल हर रोज सामने आ रही जमीनी कहानियां खोल दे रही है। ओमप्रकाश ने 14 अप्रैल से अपनी यात्रा छत्तीसगढ की राजधानी से शुरू कर बलौदाबाजार-भाठापारा, मुंगेली और बिलासपुर जिले की सरहदों को पार किया। इनकों कही भी कथित संवेदनशील सरकार और प्रशासन के नुमाइंदे नहीं मिले। जो प्रशासन की कवायदों के पोल खोलने के लिए काफी है।