पर्यावरण समरक्षण को बचाएं जीवन को रंगीन बनाएं
सोशल मीडिया,प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया,रेडियो जनसंचार आदि के माध्यमों से हम पृथ्वी पर्यावरण के बचाने हेतु अपने अपने स्तर पर कार्य करें और अपने संदेश को जनता तक पहुंचाएं आज के मेरे इस लेख में आप पृथ्वी से जुड़ी कई जानकारियों को प्राप्त करेंगे हम इसी दुनिया में रहते हैं जिसमें प्राकृतिक संसाधन सीमित जल,वायु खनिज, तेल, जंगल, घास के मैदान ,सागर, कृषि और मवेशियों से मिलने वाली वस्तुएं हमारी जीवन रक्षक व्यवस्थाओं के अंग है जैसे-जैसे हमारी जनसंख्या बढ़ रही है और हम में से हर एक व्यक्ति व संसाधनों का उपयोग भी बढ़ रहा है तो पृथ्वी के संसाधनों का भंडार निश्चित रूप से कम हो रहा है आशा नहीं की जा सकती कि पृथ्वी संसाधनों के उपयोग के बढ़ते स्तर का भार उठा पाएगी इसके अलावा संसाधनों का दुरुपयोग भी होता है इसके साथ ही अपशिष्ट और प्रदूषण की बढ़ती मात्रा सभी के जीवन की गुणवत्ता के लिए एक खतरा बन चुका है ऐसे कार्य करें जो हमारे पर्यावरण के संरक्षण में सहायक हो इस वक्त जन जागरूकता की आवश्यकता है क्योंकि पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन तेजी से घट रहे हैं और मानव के कार्यकलापों के कारण हमारे पर्यावरण का अधिकाधिक ह्रास हो रहा है इसलिए जाहिर है कि कुछ तो करना ही होगा अक्सर हम सोचते हैं कि यह सब ऐसे काम है जो सरकार को करने चाहिए लेकिन अगर हम अपने पर्यावरण के लिए खतरे पैदा करते रहे तो सवाल ही पैदा नहीं होता कि सरकार सफाई के यह सारे कार्य कर सकें पर्यावरण के ह्रास की रोकथाम हम सब के जीवन का अंग होना चाहिए जिस तरह कोरोनावायरस रोग के इलाज के लिए लॉक डाउन बेहतर विकल्प चुना गया है इसी से रोकथाम हो रही है ठीक इसी तरह पर्यावरण को हानि पहुंचाने के बाद उसकी भरपाई करने की तुलना में पर्यावरण का संरक्षण आर्थिक दृष्टि से अधिक व्यावहारिक है पर्यावरण के प्रबंध में हम व्यक्ति रूप में अहम भूमिका निभा सकते हैं हम प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी रोक सकते हैं और ऐसे प्रहरियों का काम कर सकते हैं जो पर्यावरण के प्रदूषण और ह्रास के स्रोतों की जानकारी सरकार को दें
यह केवल जन जागरूकता के द्वारा ही संभव है समाचार पत्र और रेडियो और टेलीविजन जैसे जनसंचार माध्यम जनमत पर जोरदार प्रभाव डालते हैं पर किसी ना किसी को इसका बीड़ा उठाना होगा अगर हममें से हर कोई पर्यावरण के बारे में संवेदनशील रहे तो प्रेस और संचार माध्यम हमारे प्रयासों को और धारदार बनाएंगे लोकतंत्र में राजनीतिक जनता के जबरदस्त समर्थन वाले आंदोलन पर हमेशा सकारात्मक प्रतिक्रियाएं दिखाते हैं इसलिए अगर आप संरक्षण के समर्थक किसी गैर सरकारी संगठन एनजीओ का साथ दें तो हो सकता है कि आप राजनीतिज्ञों को हरित नीतियों के निर्माण के लिए प्रभावित कर सकें हम पृथ्वी नामक अंतरिक्ष यान में रह रहे हैं जिसके पास संसाधनों की आपूर्ति सीमित हैं हर एक पर अधिक से अधिक लोगों तक यह संदेश पहुंचाने की जिम्मेदारी है हमारे देश में अनेक सरकारी और गैर सरकारी संगठन है जो पर्यावरण की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं उन्होंने पर्यावरण की सुरक्षा तथा प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में रुचि बढ़ाई है हमारा पर्यावरण दैनिक जीवन के लिए आवश्यक अनेक प्रकार की वस्तुएं और सेवाएं हमें प्रदान करता है इन प्राकृतिक संसाधन में हवा पानी मिट्टी और खनिज शामिल हैं और साथ में जलवायु और सौर ऊर्जा भी यह प्राकृतिक के अजैविक घटक हैं प्राकृतिक के जैविक घटकों में सूक्ष्म जीवाणु समेत पेड़-पौधे और जीव-जंतु शामिल है पेड़-पौधे और जीव-जंतु ऐसे विभिन्न जीवो के समुदायों के रूप में ही जीवित रह सकते हैं जो अपने आवास में आपस में घनिष्ठ संबंध रखते हैं और जिन्हें विशेष अजैव दशाओं की आवश्यकता होती है उदाहरण के लिए जंगल घास के मैदान रेगिस्तान पर्वत नदियां और झीलें तथा समुद्री पर्यावरण यह सब पौधों और पशुओं के विशेष समुदायों के लिए आवास प्रदान करते हैं प्राकृतिक अजैव पक्षों और विशिष्ट सजीव जीवो की आपसी अभिक्रिया से ही विभिन्न प्रकार के पारितंत्रओं का निर्माण होता है इनमें से अनेक सजीवों का उपयोग हमारे खाद संसाधनों के रूप में होता है अन्य का हमारे भोजन से अप्रत्यक्ष संबंध होता है जैसे मधुमक्खियां परागण करती है और बीजों को बिखराती हैं केंचुए जैसे मिट्टी के प्राणी पौधों की वृद्धि के लिए मृदा के पोषक तत्वों का परिचालन करते हैं तथा फफूंद और दीमक मृत्यु पौधों के अवयवों का वितरण करती हैं ताकि सूक्ष्मजीवों पर क्रिया करके मिट्टी के पोषक तत्व वापस ला सके हमारे पूर्वजों यानी अब से कई हजार साल पहले मानव जाति जंगलों और घास के मैदानों में आखेटक संग्राहक रूप में रहती थी और फिर कृषक और पशुपालकों में बदल गई तब हमने अपनी जरूरतों के अनुरूप अपने परिवेश को बदलना शुरू किया जब हमारी फसलें उगाने और पालतू जानवरों का उपयोग करने की योग्यता बड़ी तब यह प्राकृतिक पारितंत्र खेतिहर जमीनों में बदल गए अधिकतर परंपरागत कृषक जल के लिए प्राकृतिक संसाधनों वर्षा जल धाराओं और नदियों पर बहुत हद तक निर्भर थे फिर हमारे पूर्वजों ने कुएं खुदबाय पानी का बांध बांदा और फसलें उगाई हम आज की बात करें तो हाल ही में जमीन के किसी विशेष क्षेत्रफल से पैदावार को और अधिक बढ़ाने के लिए हमने रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल शुरू किया है लेकिन अब हम यह महसूस कर रहे हैं कि इन सब की वजह से हमारे पर्यावरण में अनेक अवांछित विसंगतियां पैदा हो गई हैं मानव जाति प्राकृतिक संसाधनों का अति उपयोग और क्षरण कर रही है जमीन के अति सघन उपयोग ने अधिकाधिक व्यक्तियों की बढ़ती मांगों को पूरा करने के बारे में पारितंत्र की क्षमता को कम कर दिया है और इन सब के लिए संसाधनों का और भी गहन उपयोग करना पड़ रहा है औद्योगिक समृद्धि नगरीकरण जनसंख्या वृद्धि तथा उपभोक्ता वस्तुओं के उपभोग में भारी वृद्धि ने पर्यावरण पर और भी दबाव डाला है क्योंकि इन सब के कारण भारी मात्रा में ठोस अपशिष्ट पैदा हो रहे हैं वायु जल और मिट्टी का प्रदूषण मानव के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालने लगा है जो लोग वनों में या वनों के आस पास रहते हैं वह वन संसाधनों का महत्व प्रत्यक्ष रूप से जानते हैं क्योंकि उनका जीवन और जीविका सीधे-सीधे इन संसाधनों पर निर्भर होता है लेकिन विशेष लोग भी वनों से बहुत लाभ हासिल करते हैं जिसके बारे में हम शायद ही सजग हो जिस जल का उपयोग हम करते हैं वह नदियों की घाटियों के पास के जल विभाजक क्षेत्रों में स्थित बनो पर निर्भर होता है हमारे घर फर्नीचर और कागजों से प्राप्त लकड़ी से बने होते हैं हम अनेक ऐसी दवाओं का प्रयोग करते हैं जो वन्य उत्पादों से प्राप्त होती है जो ऑक्सीजन हमें चाहिए उसे पानी के लिए और जो कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं उसे अवशोषित करने के लिए हम पौधों पर निर्भर हैं किसी समय बन हमारे देश के बड़े-बड़े भागों में फैले हुए थे हमारे देश के लोग वर्षों से वनों का उपयोग करते आए हैं लेकिन कृषि के प्रसार के कारण बन कुछ क्षेत्रों तक सीमित रह गए जिन पर अधिकतर आदिवासी जनता का नियंत्रण था तथा शिकार करते कंदमूल जमा करते और पूरी तरह वन संसाधनों पर जीवित रहते वनों का विनाश ब्रिटिश काल में एक प्रमुख कार्यकलाप बन गया वे अपने जहाज बनाने के लिए बड़े पैमाने पर लकड़ी लेने लगे इसके कारण अंग्रेजों ने भारत में वनविज्ञान का विकास किया लेकिन वनों की आरक्षित और सुरक्षित श्रेणियां बनाकर उन्होंने स्थानीय जनता में असंतोष पैदा किया क्योंकि इस तरह से संसाधन उनकी पहुंच से बाहर हो जाते थे इस तरह के संरक्षण में रुचि कम हुई धीरे-धीरे वन टुकड़ों में बटने लगे और आज यह हाल है भारत के किसी किसी क्षेत्र में हम वनों को देख पाते हैं प्राकृतिक के नजारे देखने के लिए हमें कई जगह घर से कई किलोमीटर दूरी पर जाना पड़ता है और टिकट देकर वनों के अंदर दाखिल होने की अनुमति लेनी होती है यह सब हमारे पूर्वजों ने और हम सब ने ही किया है आने वाली नस्लों के लिए हम कुछ नहीं छोड़ रहे ना पानी छोड़ रहे हैं ना ही वृक्ष छोड़ रहे हैं और तो और पृथ्वी को भी नष्ट किए जा जा रहे हैं वह दिन दूर नहीं जब हम आने वाली नस्लों को अपने राष्ट्रीय पक्षी राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय पुष्प के सिर्फ फोटो दिखा सकेंगे हम सबको अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी तभी जिंदगी सरल एवं रंगीन होगी अपने देशवासियों से हाथ जोड़कर निवेदन है पृथ्वी को बचाएं ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाएं धरा को एक बार फिर हरा भरा सुंदर बनाए पानी बचाएं जिंदगी बढ़ाएं देश को शक्तिशाली बनाएं मेरी आवाज को हम सब की आवाज बनाएं जय हिंद
अंजुम कादरी
इंडियन गवर्नमेंट वॉलिंटियर कोविड-19
उधम सिंह नगर उत्तराखंड