दूसरों के लिए अपनी जान दांव लगा देने वाले युवा पत्रकार तरुण कौशिक की बातें पर गौर करने ...


धनंजय साहू ,सामाजिक कार्यकर्ता , पंडरिया ,कबीरधाम की कलम से 


छत्तीसगढ़ के सरकारी तंत्रों को आज उनके कार्यप्रणाली को लेकर गौर करने की अति आवश्यकता हैं । डिसेंट रायपुर अखबार के कार्यकारी संपादक व सामाजिक कार्यकर्ता तरुण कौशिक ने जो आज मुकाम हासिल किये हैं वह अपनी संघर्ष से किया हैं । पत्रकारिता को एक मिशन मनाने वाले युवा पत्रकार तरुण कौशिक ने हमेशा खोजी पत्रकारिता की हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि दूसरों के लिए अपनी जान दांव पर लगाने की सोच रखने वाले इस युवा पत्रकार ने एक मुस्लिम महिला को किडनी तक दान देने की घोषणा करते हुए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार से इस संबंध में लिखा पढ़ी तक किया था और समय - समय पर जरुरत मद मरीजों को रक्त दान करके जीवन देने का काम करते हैं । मुझे याद हैं कि तरुण कौशिक सावन माह में एक महीने का उपवास करते हैं केवल एक समय फल फूल के सहारे ,जिन्होंने पिछले सावन महीने में एक बच्चे को रक्त दान कर उनका जीवन बचाया था । युवा पत्रकार तरुण कौशिक हमेशा कहते हैं कि इंसान हैं तो इंसानियत का फर्ज अदा करना जरूरी हैं और मेरे एक छोटा सा प्रयास से किसी को नई जिंदगी मिलती हैं तो सबसे बड़ा पुण्य का कार्य हैं लेकिन जिस तरह से उन्होंने हताशा होकर खुदकुशी करने का फैसला करते हुए सरकार और सरकारी तंत्रों और न्याय पालिका पर सवाल उठाएं हैं वह बहुत बड़ी सोचनीय विषय हैं । जिस पर सरकार और सरकारी नुमाइंदों को गौर करने की आवश्यकता हैं । कुछ समय पहले मैंने सामाजिक कार्यकर्ता एवं डिसेंट रायपुर के युवा पत्रकार तरुण कौशिक से बातचीत का हाल जाना तो उन्होंने बताया कि आज छोटे- छोटे कामों के लिए प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर सासंद, मंत्री ,विधायक तक गरीब जनता चक्कर लगाते हैं फिर भी समास्याऐ जस की तस बनी होती हैं । वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलने के लिए दर्जनों बार पत्र लिखा ,उनके निज सचिवों से लेकर निवास कार्यालय में फोन करते रहा मगर अब तक सीएम से मिलने की अनुमति नहीं मिल पाया । न्याय पालिका की बात करें तो इनके आदेश का पालन नहीं हो रहा हैं तो फिर न्याय पालिका के आदेश करने से क्या फायदा ? आज इन्होंने कहा कि मेरे इस हरकत से इनकी जग हंसाई और बदनामी हुआ हैं पर क्या सरकार और सरकारी तंत्रों को लेकर इन्होंने हार मनाते हुए खुदकुशी करने की बात कहीं ,इस से सरकार और सरकारी अफसरों को इनसे मिलकर बात करने की आवश्यकता हैं या फिर अपने कार्यप्रणाली पर सरकारी नुमाईंदे बदलाव लाए क्योंकि आज कई ऐसे पीड़ित हैं जो सालों से न्याय की मांग को लेकर जिला से लेकर मुख्यमंत्री तक ज्ञापन सौंप - सौंप कर थक चुके हैं । निश्चित रुप से युवा पत्रकार तरुण कौशिक की बातों पर हम सबको गौर करने की बहुत आवश्यकता हैं ताकि सरकारी सिस्टम से पराजित होकर कोई मौत को गले न लगाएं।