छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल सरकार में ताजपोशी से पहले शुरू हुआ विवाद


छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल सरकार में ताजपोशी से पहले शुरू हुआ विवाद


 


तरुण कौशिक, कार्यकारी संपादक, डिसेंट रायपुर


 


 रायपुर । बिलासपुर संभाग के मुंगेली जिला के कांग्रेस नेता थानेश्वर साहू को ताजपोशी से पहले विवाद का सेहरा मिल गया। कांग्रेस सरकार ने भाजपा शासन में नियुक्त डॉ. सियाराम साहू को आनन-फानन में हटाने का आदेश जारी कर थानेश्वर साहू को छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष तो नियुक्त कर दिया , लेकिन कामकाज सँभालने से पहले क़ानूनी दांवपेंच का फ़ांस फंस गया है। डॉ. सियाराम साहू सरकार के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट चले गए हैं। छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष रामजी भारती को हटाने के मामले में सरकार हाईकोर्ट में पहले ही मात खा चुकी है और वह सुप्रीम कोर्ट की शरण में गई है। समझदारी कर सरकार ने अजा आयोग में पूर्व विधायक पदमा मनहर को सदस्य ही बनाया, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति में हड़बड़ी कर गई । आयोग का पद संवैधानिक होता है, इस नाते उन्हें हटाना मुश्किल होता है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार द्वारा नियुक्त राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भी तो कोर्ट के स्टे से चल रहे हैं, शिवराज सरकार उन्हें हटा नहीं पाई।


 


*सवाल वरिष्ठ विधायकों का*


 


छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 69 विधायक हैं, जिनमें से करीब 44 विधायकों को मंत्री, संसदीय सचिव और निगम अध्यक्ष का पद मिल चुका है। कहते हैं और 10 -12 विधायकों को निगम-मंडलों में पद मिल जायेगा। दो -तीन बार के कुछ विधायक निगम-मंडलों में अध्यक्ष बन चुके हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी वरिष्ठ विधायक हैं, जो कई बार से चुनाव जीत रहे हैं और पहले मंत्री रह चुके हैं। वे निगम अध्यक्ष बनना नहीं चाहते हैं। कहते हैं वे वरिष्ठता की उपेक्षा से दुखी भी है , पर निगम अध्यक्ष बनकर कभी उनके पीछे चलने वाले नेताओं को मंत्री के तौर पर रिपोर्ट भी नहीं करना चाहते हैं। 


 


*कैसा होगा मानसून सत्र*


 


कोरोना काल में छत्तीसगढ़ विधानसभा का मानसून सत्र आहूत कर अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने बड़ी हिम्मत दिखाई है। मानसून सत्र 25 अगस्त से 28 अगस्त तक चलेगा। कहते हैं चार दिन के सत्र में सरकार का पहला उद्देश्य तो अनुपूरक बजट पारित करवाना है। सरकार ने कई नई योजनाएं शुरू कर दी है, जिसके लिए अनुपूरक बजट के जरिए राशि की व्यवस्था की जाएगी। चार दिन के सत्र में पहला दिन तो पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और अन्य को श्रद्धांजलि के बाद स्थगित हो जाना है और बाकी तीन दिन में प्रश्नकाल के साथ सरकारी कामकाज पर जोर रहेगा , विपक्ष को सरकार पर दबाव बनाने और मुद्दे उठाने का मौका कम ही मिल पायेगा। इस कारण विपक्ष भाजपा मानसून सत्र का आयोजन वर्चुअल और कम से कम सात बैठकें चाहती थी, पर सत्र बुलाने और कामकाज तय करने में तो सरकार की ही चलती है। अब देखते हैं छोटे सत्र में विपक्ष सरकार को किस तरह और कितना घेर पाती है।    


 


*गीता और गोधन न्याय योजना*


 


लगता हैं छत्तीसगढ़ की कृषि उत्पादन आयुक्त एम गीता गोधन न्याय योजना को सफल बनाने के लिए पूरी ताकत लगा रहीं हैं। गोधन न्याय योजना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की फ्लेगशिप योजना है, इसके तहत पशुपालकों से गोबर खरीदकर वर्मी कम्पोस्ट बनाया जाना है। हरेली तिहार के दिन से शुरू इस योजना को सफल बनाने के लिए कृषि उत्पादन आयुक्त कोरोना काल में भी जिले-जिले जा रही हैं। 1997 बैच की आईएएस एम गीता को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से एक साल का मैनेजमेंट कोर्स कर वापस लौटने के तत्काल बाद कृषि उत्पादन आयुक्त बना दिया गया। नई जिम्मेदारी के साथ उन्हें गोबर खरीदी योजना का दायित्व भी संभालना पड़ा। एपीसी के पद पर आमतौर से एसीएस या फिर प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी को पदस्थ किया जाता रहा है। एम.गीता अभी सचिव स्तर पर हैं। राज्य में 1995 बैच के आईएएस प्रमुख सचिव बन गए हैं और अब 1997 बैच का ही नंबर है। 1996 बैच के अधिकारी रिटायर हो चुके हैं। खाद बनने से पहले, ही गोबर चोरी होना शुरू हो गया है।जिसकी पहली रिपोर्ट भी दर्ज हो चुकी है।


 


*छवि चमकाने की जुगत*


 


कहते हैं राज्य के एक मंत्री ने अपनी छवि चमकाने का ठेका दिल्ली की एक मीडिया कंपनी को दिया है। यह कंपनी राजस्थान के एक कांग्रेस नेता और दिल्ली के एक भाजपा नेता के लिए भी काम करती है। छत्तीसगढ़ के मंत्री के सपने कुछ ऊँचे हैं , इस कारण वे पहले कांग्रेस हाईकमान का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करना चाहते हैं। मंत्री जी की छवि चमकाने के लिए मीडिया कंपनी अभी इलेक्ट्रानिक मीडिया पर जोर दे रही है। कुछ चैनल के लोकल रिपोर्टर खेल को समझकर अब मंत्री की जगह विरोधियों को भाव देने लगे हैं।  


 


*अब बन गए सुदामा*


 


कांग्रेस के एक नेता जब फक्कड़ थे और कोई पद नहीं मिला था, तब पद मिलने पर सबका भला करने की बात करते थे। कांग्रेस सरकार ने उन्हें एक निगम का अध्यक्ष बना दिया। पार्टी के संघर्षशील नेता होने के नाते उनका हक़ भी बनता था, लेकिन पद मिलने के बाद नेताजी अपने-आप को सुदामा बताने लगे हैं।