बस्तर (छत्तीसगढ़) में पत्रकारिता की मुश्किल राह, कांकेर में पत्रकार पर हमला (Journalists Attacked in Chattisgarh)

https://youtu.be/N8hfojn6mkU


Editor of Chhattisgarh-based Bhumkal Samachar, Kamal Shukla has alleged that he was attacked in Kanker for filing RTIs against the accused and reporting on the sand mafia.





Kamal Shukla/Facebook  इमेज कैप्शन, पत्रकार कमल शुक्ला 



छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित कांकेर ज़िले में स्थानीय पत्रकार सतीश यादव और कमल शुक्ला पर कथित हमले के बाद राज्य में एक बार फिर से पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं. 




आरोप है कि ये हमला कांग्रेस से जुड़े नेताओं ने किया है. कमल शुक्ला के नेतृत्व में ही पिछली सरकार में पत्रकार सुरक्षा क़ानून को लेकर कई आंदोलन हुये थे. दिसंबर 2018 में सत्ता में आने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पत्रकार सुरक्षा क़ानून लागू करने का वादा किया था. राज्य में पत्रकार सुरक्षा क़ानून तो लागू नहीं हुआ, उल्टा सुरक्षा क़ानून के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पत्रकार पर ही शनिवार को थाने के ठीक सामने हमला हुआ. इस हमले के बाद पत्रकारों ने कहा है कि राज्य में पत्रकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं और सरकार हमलावरों को संरक्षण दे रही है. इसके ख़िलाफ़ पत्रकारों ने कांकेर में भूख हड़ताल करने की घोषणा की है.वहीं विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ में आपातकाल जैसे हालात हैं.हालांकि राज्य के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहु ने कहा है कि ताज़ा घटना की प्रारंभिक जानकारी उन्हें मिली है. उन्होंने कहा, "इस मामले में जो भी दोषी है, उसके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई होगी."


पत्रकार कमल शुक्ला



क्या है पूरा मामला?




कांकेर के स्थानीय पत्रकार सतीश यादव का आरोप है कि शनिवार को जब वो एक चाय की दुकान में बैठे थे, उसी समय नगर पालिका से जुड़े कुछ कांग्रेसी नेताओं ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें पीटते हुए थाने तक लेकर गये. वहां भी उनकी पिटाई की गई. सतीश यादव के अनुसार, "मैं नगर पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लगातार लिखता रहा हूं, जिसके कारण कांग्रेस के नेता नाराज़ थे. इस नाराज़गी के कारण ही उन्होंने मुझ पर जानलेवा हमला किया."आरोप है कि इस मामले की ख़बर मिलने के बाद जब 'भूमकाल समाचार' के संपादक कमल शुक्ला और दूसरे पत्रकार इस मामले को लेकर थाने पहुंचे तो बड़ी संख्या में उपस्थित नगर पालिका के नेताओं ने दूसरे पत्रकारों को भी धमकाया.कमल शुक्ला के अनुसार, "थाना परिसर के भीतर ही पत्रकारों को गंदी-गंदी गालियां दी गईं. स्थानीय कांग्रेस विधायक शिशुपाल सोरी के एक प्रतिनिधि ने पिस्टल निकाल कर लहराते हुये मुझे जान से मारने की धमकी दी. ये वो लोग हैं, जो खनिज और रेत के अवैध कारोबार में लिप्त हैं. पुलिस ने भी इन नेताओं को उकसाने का काम किया."





इन सबके बीच ही सतीश यादव की रिपोर्ट पर कांग्रेस नेता जितेंद्र सिंह ठाकुर, मक़बूल ख़ान, मोनू शादाब व अन्य के ख़िलाफ़ मारपीट व धमकी देने का मामला दर्ज किया गया. दूसरी ओर जितेंद्र सिंह ठाकुर की शिकायत पर पत्रकार सतीश यादव के ख़िलाफ़ भी मारपीट व धमकी देने का मामला दर्ज किया गया.कमल शुक्ला का कहना है कि उन्होंने थानेदार से अनुरोध किया कि उन पर हमला हो सकता है, इसलिये उनके कक्ष में ही उन्हें थोड़ी देर रहने दिया जाये. लेकिन कमल शुक्ला व सतीश यादव को थाने से बाहर जाने के लिए कहा गया.






 




कमल शुक्ला का आरोप है कि वो जैसे ही पत्रकारों के साथ बाहर आये, लगभग तीन सौ लोगों ने एक साथ हमला कर दिया. उन्हें गंदी गालियां दी गईं, जान से मारने की धमकी दी गई और उनके सिर पर पिस्टल से प्रहार किया गया, जिसके कारण उनके सिर में चोट आई है.





कमल शुक्ला की शिकायत पर पुलिस ने चार कथित हमलावरों के ख़िलाफ़ ज़मानती धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की. उनमें जितेन्द्र सिंह ठाकुर, ग़फ़्फ़ार मेमन, गणेश तिवारी और शादाब ख़ान शामिल हैं.लेकिन शाम होते-होते सोशल मीडिया पर इस हमले का वीडियो वायरल होने लगा. इसके बाद राज्य भर में पत्रकारों ने इसका विरोध करना शुरू किया. कई ज़िलों में पत्रकारों ने सरकार के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव पारित किया. रायपुर प्रेस क्लब ने भी इसकी निंदा की.सोशल मीडिया पर भी पत्रकारों ने इस हमले को लेकर राज्य सरकार की आलोचना शुरू कर दी.







अनाम विज्ञप्ति - इसके बाद बिना नाम और हस्ताक्षर के एक विज्ञप्ति सोशल मीडिया में तेज़ी से प्रसारित हुई, जिसमें यह बताने की कोशिश की गई कि यह दो पत्रकारों के बीच का झगड़ा है.इसी बीच राज्य में कांग्रेस पार्टी के मीडिया प्रभारी शैलेष नितिन त्रिवेदी ने एक वीडियो बयान में दावा किया कि पत्रकार कमल शुक्ला पर हमला करने वालों का कांग्रेस पार्टी से कोई संबंध नहीं है.उन्होंने कहा, "मारपीट करने वाले दोनों ही व्यक्ति पत्रकार हैं. मारपीट करने वालों में किसी का कांग्रेस से कोई संबंध नहीं है. हमारा स्पष्ट मत है कि इस मामले में पुलिस को दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिये."





छत्तीसगढ़ से बाहर के जिन लोगों ने ट्विटर पर इस हमले को लेकर कांग्रेस पार्टी और राज्य सरकार की आलोचना की थी, उनमें से कई लोगों ने अनाम विज्ञप्ति और कांग्रेस के मीडिया प्रभारी के बयानों के बाद अपने ट्वीट डिलीट करने शुरू कर दिये. हालांकि, कमल शुक्ला पर हमला करने वालों के फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल की तस्वीरें जब सार्वजनिक होने लगीं तो कई पत्रकारों ने फिर से सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रखा.



कांग्रेस से रिश्ता




फ़ेसबुक पर जो जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार चार में से तीन आरोपियों ने साफ़तौर से अपना संबंध कांग्रेस पार्टी से बताया है.कांग्रेस के आयोजनों की कई तस्वीरों में ये आरोपी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और दूसरे मंत्रियों के साथ महत्वपूर्ण भूमिका में नज़र आ रहे हैं.जितेंद्र सिंह ठाकुर ने फ़ेसबुक पर खुद को कांग्रेस पार्टी से कांकेर नगर पालिका परिषद का पूर्व अध्यक्ष बताया है.



ग़फ़्फ़ार मेमन ने फ़ेसबुक में अपनी पहचान कांकेर की ज़िला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री के तौर पर लिखी है. शादाब ख़ान की फ़ेसबुक पर मौजूद कई तस्वीरों में उन्होंने अपनी पहचान कांकेर के शहर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर लिखी है.गणेश तिवारी ने फ़ेसबुक पर अपनी पहचान लिखी है कि वो कांग्रेस में नेशनल सेक्रेटरी हैं. वहीं, पत्रकार कमल शुक्ला ने 21 सितंबर को नगर पालिका में चल रही गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ पोस्ट की थी. इससे पहले भी कांकेर की नगरपालिका को मिल रही शिकायतों को लेकर वो लगातार फ़ेसबुक पर कई पोस्ट करते रहे हैं. हालांकि मारपीट की वजह पुलिस जांच के बाद साफ़ होगी.भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने कहते हैं, "यह हमला इस बात को इंगित करता है कि प्रदेश में अब आम नागरिकों के साथ-साथ पत्रकार भी सुरक्षित नहीं हैं. जो सरकार के ख़िलाफ भ्रष्टाचार के मामले उजागर कर रहे हैं, कांग्रेस की गुंडागर्दी को उजागर कर रहे हैं. उनके ऊपर इस प्रकार का क़ातिलाना हमला कांग्रेस के नेताओं ने किया, यह बहुत ही शर्मनाक घटना है. यह लोकतंत्र की हत्या है."



बस्तर में पत्रकारिता की मुश्किल राह -छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित बस्तर के इलाक़े में पत्रकारों को दोतरफ़ा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. कभी पुलिस पत्रकारों को माओवादी बताकर गिरफ़्तार करती है तो कभी माओवादी पत्रकारों को पुलिस का गुप्तचर बताकर उनकी जान ले लेते हैं. कुछ घटनायें तो ऐसी भी हुई हैं, जिनमें पत्रकार को पहले पुलिस ने माओवादी बताकर कई महीनों तक जेल में रखा और बाद में माओवादियों ने उस पत्रकार को पुलिस का मुखबिर बताकर, उसकी हत्या कर दी. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि बस्तर जैसे इलाक़ों में पत्रकारिता दोधारी तलवार पर चलने जैसा है.





पीपल्स युनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टी ने पत्रकारों पर हुये हमले के बाद एक बयान जारी करते हुये कहा है कि कमल शुक्ला अपने लेखों द्वारा लगातार सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और अवैध रेत खनन का पर्दाफ़ाश कर रहे थे. उन्हें इससे पहले भी जान से मारने की धमकियाँ मिली हैं. संगठन के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान और सचिव शालिनी गेरा की ओर से जारी इस बयान में आरोप लगाया गया है कि कमल शुक्ला पर यह कोई सहज, स्वतःस्फूर्त हमला नहीं था बल्कि एक सुनियोजित, पूर्वकल्पित हमला था. इस हमले में उनके सिर और गर्दन पर गम्भीर चोटें आई हैं.बयान में पत्रकारों को सुरक्षा देने, इस हमले की जांच करने, कांकेर पुलिस थाने की भूमिका की भी जांच करने और एक प्रभावी पत्रकार सुरक्षा क़ानून शीघ्र लागू करने की मांग की गई है.








https://www.indiatoday.in/india/story/chhattisgarh-cm-assures-action-against-congress-workers-held-for-thrashing-journalist-1725987-2020-09-27


https://twitter.com/BBCHindi/status/1310128991802740736?s=19


https://thewire.in/media/chhattisgarh-journalist-kamal-shukla-attacked-by-local-congress-leaders-fir-registered


https://www.hindustantimes.com/india-news/senior-chhattisgarh-journalist-beaten-up-in-kanker-district-of-bastar-region/story-jDzPrH3GNKN6BQ3lpfwo5J.html


https://www.opindia.com/2020/09/congress-goons-beat-up-kamal-shukla-journalist-chhattisgarh/


https://www.huffingtonpost.in/entry/congress-chhattisgarh-journalists-attacked_in_5f71cd3ec5b61af20e78bccd